LJP: चाचा पशुपति ने अध्यक्ष पद से हटाया तो भतीजे चिराग ने पार्टी से किया निलंबित, जानिए पूरा सियासी ड्रामा
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लोक जनशक्ति पार्टी में सियासी घमासान बरकरार है। पार्टी में किसका सिक्का चलेगा और किसका कटेगा पत्ता इसे लेकर स्थिति बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं है। पूरे सियासी हलचल लगातार पेचीदा होता जा रहा है। पहले जहां चाचा पशुपति कुमार पारस समर्थित नेताओं ने पार्टी के संविधान का हवाला देते हुए चिराग को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाया। उनका कहना था कि चिराग तीन-तीन पदों पर एक साथ काबिज थे।
जिसके बाद शाम को चिराग पासवान ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई और पांचों सांसदों को निलंबित कर दिया। बैठक से पहले पटना में चिराग के समर्थकों ने चाचा पशुपति कुमार पारस के खिलाफ नारेबाजी और हंगामा किया। समर्थकों ने पशुपति पारस समेत सभी पांच सांसदों और नीतीश कुमार की तस्वीरें भी जलाईं।
चिराग समर्थकों का आरोप है कि नीतीश कुमार ने एलजेपी में टूट कराई है, वो सिर्फ चिराग को ही नेता मानते हैं। रामविलास पासवान ने पशुपति पारस को MLA-MP बनाया और उन्होंने उनके बेटे की पीठ में छुरा भोंका। अगर कोई नाराजगी थी तो चिराग से बात करनी चाहिए थी।
इस बैठक से पहले चिराग ने चाचा के नाम के नाम बेहद भावुक ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि पापा की मौत के बाद आपके व्यवहार से टूट गया। मैं पार्टी और परिवार को साथ रखने में असफल रहा। चिराग एक पुराना पत्र भी ट्विटर पर शेयर किया है।
चिराग पासवान ने ट्वीट में लिखा, ”पापा की बनाई इस पार्टी और अपने परिवार को साथ रखने के लिए किए मैंने प्रयास किया लेकिन असफल रहा। पार्टी मां के समान है और मां के साथ धोखा नहीं करना चाहिए। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है. पार्टी में आस्था रखने वाले लोगों का मैं धन्यवाद देता हूं। एक पुराना पत्र साझा करता हूं।”
पापा की बनाई इस पार्टी और अपने परिवार को साथ रखने के लिए किए मैंने प्रयास किया लेकिन असफल रहा।पार्टी माँ के समान है और माँ के साथ धोखा नहीं करना चाहिए।लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। पार्टी में आस्था रखने वाले लोगों का मैं धन्यवाद देता हूँ। एक पुराना पत्र साझा करता हूँ।
LJP में हुए परिवर्तन को लेकर सांसद चौधरी महबूब अली कैसर ने कहा कि बिहार चुनाव में चिराग ने बड़ी गलती की। एनडीए में रहते हुए JDU के विरोध में काम किया। इसी कारण हम लोगों ने नेतृत्व परिवर्तन का निर्णय लिया। चिराग में अनुभव की कमी है इसलिए हमने पशुपतिनाथ पारस का समर्थन किया।
कैसर ने कहा कि चिराग ने बिहार की राजनीति का नब्ज नहीं पकड़ा और बड़ी भूल की जिसका खामियाजा उन्हें और पूरी पार्टी को भुगतना पड़ा। चिराग पासवान को हमारी शुभकामनाएं हैं। इस परिस्थिति से निपट कर वे आगे बढ़ेंगे और एक बड़े नेता बनेंगे। ललन सिंह के मसले पर उन्होंने कहा कि ललन सिंह के कहने पर पार्टी में टूट नहीं हुई है। हमारी मुलाकात ललन सिंह से वीणा सिंह के घर पर हुई थी। हम चाहते हैं चिराग पासवान हमारे साथ रहे।
चिराग पासवान के खिलाफ पार्टी में इतनी बड़ी बगावत के पीछे कारण ये बताया जा रहा है कि वे पिता रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद से सारे फैसले खुद ही लेने लग गए थे। वे किसी भी सांसद या पार्टी के पदाधिकारी से कोई राय नहीं लेते थे। बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद चिराग पासवान ने एलजेपी के कई नेताओं से दूरी बना ली थी। इतना ही नहीं सांसदों से भी न के बराबर मिल रहे थे।
पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि चिराग पासवान हर फैसला राजनीतिक सलाहकार सौरव पांडेय की सलाह पर लेते थे। पार्टी सूत्रों की मानें तो सौरव पांडेय की सलाह पर ही एलजेपी ने बिहार में एनडीए से बाहर जाकर चुनाव लड़ा, जिसके नतीजे सबके सामने हैं।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी में किस को क्या जिम्मेदारी दी जाएगी और कौन सा नेता किस सीट से चुनाव लड़ेगा ये भी सौरव पांडेय तय करते थे। चिराग सिर्फ उन फैसलों पर मुहर लगाते थे।
गौरतलब है कि बीते रविवार की शाम से ही पार्टी में कलह शुरू हो गई थी। सोमवार को चिराग पासवान को छोड़ बाकी पांचों सांसदों ने संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई और हाजीपुर सांसद पशुपति कुमार पारस को संसदीय बोर्ड का नया अध्यक्ष चुन लिया। इसकी सूचना लोकसभा स्पीकर को भी दे दी गई। सोमवार शाम तक लोकसभा सचिवालय से उन्हें मान्यता भी मिल गई।
वहीं दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान जब चिराग ने जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का फैसला किया तो उनके सांसद चाचा पशुपति पारस ने इसका विरोध किया। इसी दौरान जब पारस ने नीतीश की तारीफ की तो चिराग ने उन्हें पार्टी से निकालने की धमकी दी। तब पशुपति और चिराग के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई। बाद में नीतीश ने चिराग को धीरे-धीरे लोजपा से अलग करने की योजना बनाई। पहले इकलौते विधायक को जदयू में शामिल किया। फिर 200 पदाधिकारियों को जदयू की सदस्यता दिलाई। अंत में चिराग को संसदीय दल में भी अलग-थलग कर दिया।
विधानसभा चुनाव में लोजपा के कारण जदयू के तीसरे नंबर पर पहुंचने के बाद से नीतीश सतर्क हैं। वह देर सबेर फिर से गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में आना चाहते हैं। यही कारण है कि नतीजे आने के बाद नीतीश पार्टी का पुराना वोटबैंक हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने अपने धुर विरोधी रहे उपेंद्र कुशवाहा को साधा है। उनकी कोशिश राज्य के पसमांदा मुसलमानों में पुराना आधार हासिल करने की भी है।